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R4 Show Review - 26th & 27th Jan 2024

2/1/2024

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सकारात्मक और तात्कालिक प्रस्तुतीकरण

पार्था  जी, लगभग चार दशक तक उच्च शिक्षण  के कार्य में संलग्न रहे हैं।  मुंबई के बहुत जानेमाने और सफल कोचिंग इंस्टिट्यूट के प्रधान के पद पर रहते हुए उन्होंने न जाने कितने विद्यार्थियों का भविष्य संवारा है जैसा कि ग्रुप के कई सदस्यों ने अपने निजी अनुभव से बताया । उनकी सफलता का राज़ उनके मेंबर प्रेजेंटेशन से भली भांति उजागर हो जाता है जिसमें सकारात्मकता और तात्कालिकता कूट-कूट कर भरी हुई थी। उनके द्वारा प्रस्तुत सभी गाने उमंग, उत्साह और प्रेरणा से लबालब थे । एक गाना उन्होंने हाल ही में संपन्न हुए एक राष्ट्रीय समारोह को समर्पित किया और एक 26 जनवरी के उपलक्ष्य में  देश के गुणगान को संबोधित किया । इस तरह उनका शो किसी भी तरह की नकारात्मक भावना, निराशा, गम या हताशा से कोसों दूर था। इस तरह की मन स्थिति में रह पाना आज के तनाव भरे जीवन में कोई आसान काम नहीं है। एक वरिष्ठ नागरिक होते हुए भी वो  अपने आप को गाने की विधा में पूरी तरह डुबोये रखते हैं और उनके लाइव शो यदा कदा होते रहते हैं जो एक खुशगवार जीवन जीने की बेहतरीन कला है जिससे हम सबको प्रेरणा मिलती है ।

उनके द्वारा प्रस्तुत पहला गाना एक अनूठा गाना है जिसे कोई शीर्ष गायक  द्वारा नहीं गाया गया है । इसे गायक, गायिकाओं के समूह द्वारा  गाया जा रहा हैरान जो एक आनंद का उत्सव मनाते हुए नाच रहे हैं और गा रहे हैं। इसको उन्होंने उस उत्सव को समर्पित किया जिसका साक्षी पूरा देश रहा है । शैलेंद्र, शंकर जयकिशन और कोरस गायको द्वारा रचित ये रचना नाचो गाओ नाचो धूम मचाओ नाचो आया मंगल त्यौहार लेके खुशियां हजार सितार, ढोलक और तबले की लय पर बहुत सुंदर बन पड़ा है। गाने में किसी महान व्यक्ति या देवी देवता का नाम नहीं है पर खुशी का माहौल गाने में भरा  है और इसी को रेखांकित करते हुए, पार्था   जी ने इस मौके पर ये गाना सुनवा कर अपनी सूझबूझ का परिचय दिया है। फिल्म में गाना वैशाली के नागरिक एक दुश्मन प्रदेश  मगध पर हुई जीत के जश्न में गाते  दिखाए गए हैं। फिल्म में लता मंगेशकर के गाए बहुत मशहूर गाने हैं जिनकी ओट में यह सहगान  कहीं छुप सा गया था। यये प्रस्तुत करता की दूरदर्शिता का परिचायक है कि उन्होंने इस गाने को सबके सामने लाकर उसे पहचान दिलाई और उसको खुशी के मौके से जोड़कर प्रस्तुत किया।

उनके द्वारा प्रस्तुत दूसरा गाना, बचपन को समर्पित था जो हम सब के जीवन काल का सर्वश्रेष्ठ काल माना जाता है। साहिर का लिखा, कलयान्जी आनंद जी का स्वरबद्ध किया, किशोर कुमार ,मन्नाडे और मोहम्मद रफी की आवाज में गाया नायाब गाना सन‌70  की फिल्म नन्ना फरिश्ता से लिया गया है
बच्चों में है भगवान
साहिर  ने हीं एक-दो साल पहले दो कलियां फिल्म में इसी तरह का एक बहुत असरदार और दिल को छूने वाला गाना दिया था
 बच्चे मन के सच्चे
उस गाने में प्रस्तुत भावना का इस गाने में भी कमोबेश समावेश किया गया है
ज्ञानी जग में फूट कराए बच्चा मेल कराए
हम जैसे भूले भटकों को सीधी राह दिखाएं
इसके भोलेपन पर सदके दुनिया भर का ज्ञान
दीन धर्म और जात-पात का बच्चा भेद न जाने
अपने को सबका समझे सबको अपना माने
 ईश्वर को पाना चाहें तो बच्चे को पहचान
 मंदिर मस्जिद और गिरजे में जिसका नूर समाया
एक नन्ही सी जान छुपा के वो अपने घर आया
पापी मन को पावन करती उसकी हर मुस्कान
इतने अच्छे और यथार्थवादी बोल उस युग की देन थे जिसमें गीत, संगीत , गायकी सब दिल को झंझोड़ने वाली हुआ करती थी । तीनों  दिग्गज गायकों की जोरदार प्रस्तुति  गाने को यादगार बना देती है।  गाने के अंतरों की धुन बैराग फिल्म के गानों के अन्तरों से आसानी से जोड़ी जा सकती है।  साहिर लुधियानवी की काबिलियत  गाने के हर लफ्ज़ में निहित आदर्शवादी और व्यवहारिक गूढ अर्थ से जगजाहिर है । बच्चों के  प्यार के रूप में जीवन का असली सौंदर्य इस मंच पर पूरी शिद्दत से प्रस्तुत करने के लिए पार्था जी के हम शुक्रगुजार हैं।
आज के काल में , दुर्भाग्य से धर्म और राष्ट्रवाद का ओपिएम खिलाकर ध्रुवीकरण और अलगाववाद  को  खूब शय दी जा रही है इस गाने के बोल बहुत ही प्रासंगिक और महत्वपूर्ण हो जाते हैं ।

आज मेरे यार की शादी है वर्मा मलिक, रवि और रफी द्वारा गाया ये सन 77 का गाना उस वक्त होने वाली शादियों में एक ज़रूरी अंग बन गया था । अभिनेता देवेन वर्मा और संगीतकार रवि द्वारा भी इसमें गायकी का योगदान दिया गया है। गाने में बांसुरी और क्लेरिनेट का बेहतरीन प्रयोग सुनने में मिलता है।
रफी द्वारा हर जाने के मूड के अनुसार अपनी आवाज को आसानी से मोडुलेट करने का उदाहरण इस गाने में बखूबी देखा जा सकता
है । आज भी उत्तरी भारत में हर विवाह में इस गाने पर नाच गाना होना लगभग अवश्यम्भावी है।  इससे इस गाने की प्रसिद्धि  और  आमजन द्वारा स्वीकार्यता का अंदाजा लगाया जा सकता है ।

मेरी लॉटरी निकलने वाली है कमर जलालाबादी, कल्याण जी आनंद जी और किशोर कुमार के सहयोग से बना यह सन 70 का गाना किशोर कुमार ने अपने चिर परिचित चुलबुले और उछल कूद के अंदाज में बखूबी गाया है । निरर्थक शब्दों की भी इसमें भरमार है पर कमाल की बात ये है कि  ये सब बोलते हुए दोबारा किशोर कुमार सम पर बहुत आसानी से आ जाते हैं और सुर ताल से जरा भी‌ बाहर नहीं जाते । ये उनकी विलक्षण प्रतिभा का कमाल है जो हर कोई नहीं कर सकता ।  इन्हीं तीन कलाकारों के संगम से लगभग उसी समय एक और इसी तरह का गाना आया था जो बहुत मकबूल हुआ था
जय गोविंदम जय गोपालम। मोहम्मद रफी ने भी कुछ ऐसे गाने गए हैं पर वो ज्यादा मकबूल नहीं है ।

कार्यक्रम का एकमात्र रोमांटिक गाना आशा भोसले और आरडी बर्मन का गाया हुआ था जो सन 74 की फिल्म मदहोश से लिया गया था और आरडी बर्मन के संगीत में मजरूह सुल्तानपुरी द्वारा लिखा गया है।
शराबी आंखें गुलाबी चेहरा कैसा लगे दिल मेरा दिलरुबा
 गाना अपने समय में बहुत मशहूर हुआ था पर बाद में ये बिल्कुल खो सा  गया । पंचम के प्रिय साज़ मादल, ड्रम आदि इसमें प्रयोग किए गए हैं। गाने का अंत भी बहुत स्मूथ है।  आरडी बर्मन की मौलिक आवाज गाने में चार चांद लगा देती है। गाना कभी-कभी जवानी दीवानी के दोगाने की याद दिलाता है
जानेजां  ढूंढता फिर रहा
 यह गाना बहुत फास्ट बीट पर है और आशा भोसले ने भी अपनी गायकी का बेहतरीन नमूना पेश करते हुए आरडी बर्मन का बहुत अच्छा साथ दिया है। इस गाने को भी सामने लाने का कार्य पार्था  जी ने करके हम सब संगीत प्रेमियों को इस गाने की खूबी से परिचित कराया । एक से एक मशहूर रोमांटिक गानों को छोड़कर प्रार्था  जी ने इसी गाने को चुना जो उनकी पैनी नजर को दर्शाता है।

पा पा मा गा  रे सा
लता मंगेशकर का गाया अगला गाना सलिल चौधरी द्वारा लिखा गया है और संगीत भी उनके द्वारा दिया गया है  ।  ये एक नॉन फिल्मी बांग्ला गीत है जो सन 71 में रिलीज हुआ था। गाने में जल तरंग और बांसुरी का प्रयोग देखने को मिलता है। गाने में सरगम का उत्कृष्ट प्रस्तुतीकरण लता मंगेशकर द्वारा किया गया है जो गाने को अपनी तरह का अकेला गाना बना देती है। वैसे तो सलिल चौधरी की हर रचना ही जटिल होती है पर ये तो कुछ अधिक ही पेचीदा है पर लता मंगेशकर ने अपनी अभूतपूर्व प्रतिभा का नजारा देते हुए गाने को पूरा न्याय दिया है । एक बंगला नॉन फिल्मी गाने को खोज लाना भी प्रस्तुतकरता जैसा खोजी संगीत प्रेमी ही कर सकता है, जिसके लिए हम सब उनको सेल्यूट ही कर सकते हैं ।  बांग्ला के बेहतरीन फिल्मी और नॉन फिल्मी गानों के अतुल भंडार की भी एक बानगी इससे मिल जाती
 है ।

अगला गाना पार्था  जी ने इंद्रजीत सिंह तुलसी द्वारा लिखित लक्ष्मीकांत प्यारेलाल द्वारा निर्देशित और महेंद्र कपूर, मन्ना डे और श्यामा चित्त्तार द्वारा गाया हुआ बहुत प्रसिद्ध प्रेरणादायक गीत फिल्म शोर से लिया
 जीवन चलने का नाम चलते रहो सुबह ओ शाम गाना उमंग, उत्साह और आशावादिता से भरा पड़ा है और स्क्रीन पर भी साइकिल पर नायक एक रिकॉर्ड कायम करने की फिराक में है जिसमें दम खम की नितांत आवश्यकता है क्योंकि उसे रिकॉर्ड कायम करने पर मिलने वाले पैसे की बहुत ज़रूरत है। गाने के बोल सिचुएशन के अनुसार बिल्कुल उपयुक्त हैं और किसी भी प्राणी के लिए अपने संकल्प को पूरी जी जान से पूरा करने के लिए कोशिश करने पर अमादा करने की क्षमता रखते हैं।
जो जीवन से हार मानता उसकी हो गई छुट्टी
नाक चिढ़कर कहे जिंदगी तेरा मेरा हो गया कुट्टी उजली उजली भोर सुनाएं तुतले तुतले बोल अंधकार में बैठा सूरज अपनी गठरी खोल

26 जनवरी को प्रस्तुत कार्यक्रम के उपलक्ष्य में प्रस्तुतकरता द्वारा आखिरी गाना देशभक्ति का चुना गया और जो गाना उन्होंने चुना वो बहुत ही अनसुना है। सन 55 की फिल्म जगतगुरु शंकराचार्य से लिया गया गाना अविनाश व्यास के संगीत में भारत व्यास द्वारा लिखा और मन्ना डे द्वारा गाया हुआ है
 सर पर हिमालय का छत्र है चरणों में नदियां एकत्र हैं हाथों में वेदों का मंत्र है धरती  कहां ये अन्यत्र है जय भारती वंदे भारती
गाना बहुत अच्छा है पर सामान्यत:  जोश खरोश से भरे गाने देशभक्ति के होते हैं उनसे बिल्कुल भिन्न है पर अपने असर में उनसे कहीं ज्यादा है क्योंकि इसमें भावना/ जज़्बात का पुट उच्चतम स्तर का है और मेलोडी भी बहुत अच्छी है । भरत व्यास ने  इसके बोल बहुत सुंदर लिखे हैं  । देशभक्ति के दूसरे मकबूल और गरम दल के गानों की अपेक्षा प्रस्तुतकरता ने ये  सॉफ्ट टच वाला गाना चुना जो हिंदी फिल्मी गानों में उनकी विलक्षण पकड़ का सूचक है।
उनके पास ऐसे नायाब गानों का अतुल भंडार है पर वो  उन्होंने अपने आगे आने वाले प्रस्तुतीकरण या पसंद के गानों के लिए रख छोड़े हैं।

इस तरह पार्था  जी का सदस्य प्रस्तुतीकरण समाप्त हुआ जिसमें उनके द्वारा सबको अचंभित करते हुए बिना किसी थीम के पर अपनी पसंद के अपनी तरह के गाने दिए गए जो सब उल्लास और आनंद से भरे थे और कुछ गानों में प्रेरणा का स्रोत भी भरपूर था। उनके द्वारा यह भी कहा गया कि रफी के गाने वो इसमें नहीं ले पाए पर अपने प्रस्तावित प्रीमियर मेंबर प्रेजेंटेशन में उसकी कमी पूरी करने की पूरी कोशिश करेंगे ।  रफी के गाने चाहे इस कार्यक्रम में कम हो पर कार्यक्रम की गुणवत्ता में कोई कमी नहीं थी और पार्था जी  द्वारा प्रस्तुत प्रोग्राम अपनी खरी पॉजिटिविटी की वजह से याद किया  जाएगा ।
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    Ramakant Gupta

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