आपका आज का प्रस्तुतीकरण हमेशा की तरह मनभावन और गहन जानकारी लिए हुए था । आज के शो के गानों की ये खासियत थी कि आज प्रसिद्ध गाने की आड़ में कोई बहुत चर्चित और बजा हुआ गाना नहीं था। ऐसे गानों का चुनाव ही इस शो को एक आदर्श शो बना देता है । बहुत से दिग्गज कलाकारों को श्रद्धांजलि भी दी गई जो उनका हक है क्योंकि उन्होंने सभी संगीत प्रेमियों को जो वेशकीमती देन दी है उसको हम कभी भूल नहीं सकते पर इस तरह एक छोटे से गिलहरी प्रयास से, उनका कुछ कर्ज तो उतार ही सकते हैं। इस शो में ऐसे महान कलाकारों को याद किया जाना एक बहुत अच्छी प्रथा है।
ये रात है प्यासी प्यासी कैफी आज़मी को याद करते हुए उनके कल्याण जी आनंद जी से दुर्लभ सहयोग और मोहम्मद रफी की बेहतरीन अदायगी इस गाने से देखने को मिलती है। 70 के दशक में जब कि किशोर दा का बोलबाला था मोहम्मद रफी ने अपने साठ के दशक के चरम काल की तरह ही इस गाने को अंजाम दिया है । उस जमाने के गानों के चलन के विरुद्ध इस गाने में जबरदस्त ठहराव है जो गाने को विशिष्ट पहचान देता है और सुनने वाले को सुकून । गीतकार के इस दुर्लभ गीत को चुना जाना बहुत प्रशंसनीय है । गाने के बोल सेंसुअस होते हुए भी कहीं से भी वल्गर या अश्लील नहीं है और इसके लिए हम कैफी साहब को सलाम कर सकते हैं। नगमा ए दिल को छेड़ के होठों में क्यों दबा लिया संगीतकार चित्रगुप्त को समर्पित यह बेहतरीन दोगाना शक्ति सामंत की फिल्म से लिया गया था और चित्रगुप्त की प्रतिभा को भली-भांति उजागर करता है । गाना चर्चित ना होते हुए भी बहुत सुमधुर है और इसका चुनाव भी बेहतरीन है। किशोर कुमार को चित्रगुप्त ने उसे दौर में बहुत अलग तरीके से और अच्छे तरह गवाया है । संतूर और तबले का मनमोहन इस्तेमाल गाने में नजर आता है । महान संतूर वादक शिवकुमार शर्मा को याद करने के लिए हृदयनाथ मंगेशकर के निर्देशन में लता मंगेशकर का गाया एक मराठी गाना प्रस्तुत किया गया जो अव्वल दर्जे का है। मराठी भाषा न जानने वालों के लिए भी इस गीत को सुनना एक विलक्षण अनुभव है । इसके गीतकार बी आर तांबे बताए गए जिन्होंने यह गाना 1900 ई के शुरू में लिखा था। गाने में संगीतकार की विलक्षण प्रतिभा से अचंभित हुए बिना नहीं रहा जा सकता । यह बताया गया कि इसमें जीवन को कैसे जिया जाना है उसके संबंध में कुछ दर्शन दिया गया है । सोच के ये गगन झूमे अभी चांद निकल आएगा ,आनंद बक्क्षी, एसडी बर्मन, लता मंगेशकर और मन्ना डे द्वारा रचित यह कालजई रचना किरनजीत चतुर्वेदी की बेहतरीन पसंद थी । गाने के मन को छू लेने वाले बोल आनंद बक्शी के न होकर इंदीवर या भरत व्यास के लगते हैं। आराधना के समकक्ष रिलीज हुई ये फिल्म अपने अलग तरह के संगीत के लिए जानी जाती है। गीतकार और संगीतकार की अद्भुत रेंज की जानकारी इस गाने को सुनकर मिल जाती है। मन्ना डे और लता मंगेशकर ने गाने के बोलो और संगीत के साथ पूरा न्याय किया है और गाने को सदाबहार बना दिया है । डॉक्टर कैंडी ने भूपेंद्र सिंह द्वारा कंपोस किया और गाया कबीर का भजन मोको कहां ढूंढे बंदे सब साथियों को सुनवा कर आध्यात्मिक लोक में पहुंचा दिया। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धर्म को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की प्रथा के चलते 500 साल पुराने इस गाने की प्रासंगिकता आज से ज्यादा और कभी नहीं कहीं नहीं हो सकती। हम सब यह भजन सुनकर ही बड़े हुए हैं क्योंकि 70 के दशक में यह रेडियो में नॉन फिल्मी गानों के तहत सुनने में आता था। गाने के बोल हर धर्म को समान मानते हुए अपने अंदर ईश्वर की तलाश पर बल देते हैं ना की किसी तीर्थ स्थान या धार्मिक नगर विशेष के भ्रमण को । पुराने वाद्य यंत्र इकतारे का खूबसूरत प्रयोग इस गाने में किया गया है और गाने के बोलो को एक नई पहचान देता है । सावन कुमार टॉक का लिखा और उषा खन्ना के संगीत में आशा भोंसले द्वारा गाया गाना आओ यारों गांंओ, आओ यारों नाचो, आशा भोसले की गायकी का एक अनोखा नमूना है जिससे उन्होंने दशकों तक अपने चाहने वालों को अभिभूत किया । गाने की धुन बहुत आकर्षक है और सुनने वालों को अपने पैर थिरकाने पर मजबूर कर देती है। रात सर्द सर्द है मोहम्मद रफ़ी और आशा भोसले का गाया राजा मेहदी अली खान का लिखा ओपी नैयर के संगीत में चुना गया यह गाना संगीतकार को श्रद्धांजलि स्वरुप सुनाया गया। यह भी शक्ति सामंत की एक फिल्म जाली नोट से लिया गया था । निर्देशक ने और भी फिल्मों में इसी संगीतकार को मौका दिया । उन्होंने सर्वकालिक संगीत उनकी फिल्मों में दिया है । ड्रम बीट्स के साथ ब्रश और ट्रंपेट के लाजवाब प्रयोग से सजा यह गाना कम ओरकस्टेशन में भी बहुत खूबसूरत बना है । इसके शुरू में विसलिंग का उपयोग बहुत अच्छे अंदाज में किया गया है । एक काउंटर मेलोडी फ्लूट की भी चलती रहती है जो ध्यान देने पर पता चलती है। सरदार मलिक की बेहतरीन रचना ए गम ए दिल क्या करूं ए वहशत ए दिल क्या करूं जो मूलत मजाज की लिखा हुआ था और तलत महमूद ने गाया था के फीमेल वर्जन को प्रस्तुत किया गया जो आशा भोसले ने गाया है और किसी और गीतकार ने लिखा है। इस के बोल भी मेल वर्जन से भिन्न है और आशा भोसले ने अपने अंदाज में इसको बखूबी गाया है। इस को लिया जाना भी शो के संचालको की बुद्धिमता और सूझबूझ का परिचायक है क्योंकि यह बहुत कम सुना जाता है तलत महमूद का गाया गाना ही बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है। कार्यक्रम के निर्माता और प्रस्तुतकरता दोनों को हमारा धन्यवाद । 🙏🙏
0 Comments
Leave a Reply. |
Ramakant GuptaRetd. Government Official & Music Lover Archives
February 2024
Categories |